साहित्य में डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ का अनूठा योगदान

श्रेणी : हिन्दू धर्म | लेखक : vijay kumar | दिनांक : 16 November 2023 11:38

अरुण जी की कहानियों में जीवन मूल्यों से जुड़ी घटनाओं की प्रधानता है। भावनाओं को तथ्यों और तर्कों के आधार पर प्रस्तुत करने के लिए भाषा की सरलता और इससे भी बढ़कर सहजता पर वह अधिक ध्यान देते हैं। उनकी कहानियां समाज को सकारात्मक संदेश देती चलती हैं। कविताओं के संदर्भ में उनका मानना है कि कविताएं मन को छू सके तभी वें कविताएं हैं। अरुण जी अधिकांशतः गीत और ग़ज़ल लिखते हैं और उसे अपनी साधना मानते हैं। उन्हीं के शब्दों में-‘‘गीत में मात्र लफ़्फ़ाज़ी या तुकबंदी नहीं होती,बल्कि गीत तो पाठक और श्रोता की भावनाओं को जगाकर आनंद की अनुभूति कराने का दिव्य माध्यम होता है।’’ उनका लेखन मूलतः सकारात्मक रहा है। वह मानते हैं कि जो लेखक नकारात्मक विचार या भाव लेकर चलता है, उसे समाज आज नही ंतो कल अस्वीकार कर देता है।40 से अधिक चर्चित कृतियों के रचयिता डॉ.अरुण के साहित्य कोश में चार बाल कविता-संग्रह भी शामिल हैं। उनकी पुस्तकों में ‘जैन कहानियां’, ‘जैन रामायण की कहानियां’, ‘दादी मां ने हां कह दी’, ‘अभिनंदन’, ‘बाती नदी हो जाए’, ‘गीत त्रिवेणी’, ‘जीवन अमृत’, ‘अक्षर चिंतन’, ‘पुष्पदंत’, ‘स्वयंभू एवं तुलसी के नारी पात्र’, ‘काव्य सरोवर का हंस’, ‘अहसास’, ‘अभिनंदन’, ‘नया सवेरा’, ‘नदिया से सीखो’, ‘कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर रचना-संचयन’ और ‘ प्राकृति-अपभ्रंश: इतिहास दर्शन’ प्रमुख रूप से शामिल हैं।