सुसंस्कृत सियासत का स्वप्नदर्शी पत्रकार
आधुनिक पत्रकारिता में सत्य और संवेदना के सिपाही अच्युतानंद मिश्र
आज जब पत्रकार और पत्रकारिता दोनों सवालों के साए में हो तब अच्युतानंद मिश्र जैसे लोगों की छवियां अचानक जेहन में आ जाती है। जो संपादक, पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद, आयोजनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता या कहें तो, जिस किसी भी भूमिका में रहे अपने पद और कद दोनों के साथ न्याय किया। देश के नामचीन अखबारों जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, लोकमत समाचार में एक पत्रकार और संपादक के नाते उन्हें हिन्दी जगत के लोगों ने देखा-सुना और पढ़ा है। उनकी कमल और वाणी से निकली आवाज लोगों को आपस में जोड़ती है...उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इंसानों की सहज कमजोरियां भी उनके आसपास से होकर नहीं गुजरी हैं। राग-द्वेष और अपने-पराए के भेद से परे जैसी दुनिया उन्होंने रची है उसमें सबके लिए आदर, प्यार, सम्मान है और हर किसी को कुछ न कुछ देने का भाव है...
"सियासत से नैतिकता गायब तो संस्कार और संस्कृति पर जोर"
अच्युतानंद मिश्र की माने तो हमारे देश में संस्कृति राजनीति को नियंत्रित करती है। भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म को किसी सेना या दूसरे संसाधनों के जरिए नहीं, बल्कि एक जगह से दूसरी जगहों तक भ्रमण करते हुए उसका प्रचार-प्रसार किया। तब उनकी मंशा मनुष्य को समृद्व करने के साथ ही उसके जीवन में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना था। आज देश में गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा है और इससे निपटने के लिए कोशिश तो की जा रही है। लेकिन उस कोशिश में प्रमाणिकता कितनी है, ये बात किसी को भी पता नहीं है। अच्युतानंद मिश्रा कहते हैं कि मौजूदा दौर में राजनीति से नैतिकता गायब हो गई है। उनके अनुसार, महात्मा गांधी कहा करते थे कि नैतिकता और सिद्धांत के बिना राजनीति का कोई अर्थ नहीं है। जिन सांस्कृतिक मुद्दों के आधार पर स्वाधीनता का आंदोलन लड़ा गया, वह सांस्कृतिक मुद्दे स्वाधीनता के बाद से गायब हैं। अच्युतानंद मिश्र का कहना है कि आजादी के 75 वर्षों में हम तुलना करें कि हमने स्वाधीनता के बाद कितने महापुरुष पैदा किए ? कितने महात्मा गांधी, कितने जवाहरलाल नेहरू, कितने लाल बहादुर शास्त्री, कितने लोकमान तिलक पैदा किए। यह किसी भी देश की राजनीति का मापदंड होना चाहिए। हालांकि देश में तकनीक के साथ शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। अब दुनिया के लोग हिंदुत्व की ओर देख रहे हैं।अच्युतानंद मिश्र के मुताबिक भारत एक ऐसा देश है, जिसके मन में किसी के लिए कोई वैर-भाव नहीं है। स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका गए थे, तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि जो कुछ भी दूसरे वक्ताओं ने अपने-अपने धर्म के बारे में कहा है कि वह सब कुछ ठीक है, लेकिन हिंदुत्व सभी को साथ लेकर चलने वाला धर्म है। हिंदुत्व का हिंदुस्तान के अलावा जब भी बाहर प्रचार प्रसार होगा, वह जीवन मूल्यों के आधार पर ही होगा। पिछले 75 वर्षों में जिस तरह से राजनीति हुई है उससे हिंदुत्व पिछड़ गया है। हालांकि अब धीरे-धीरे सुधार होना शुरू हो गया है। अच्युतानंद मिश्र के बारे में कहा जाए तो वो ऐसी शख्सियत, जिनके अंदर समाहित है सभी के प्रति आदर और सम्मान का भाव