कानपुर की ऐतिहासिक धरा पर न जाने कितनी कलमों ने समाज की तस्वीरें उकेरी हैं, लेकिन कुछ कलमें ऐसी भी होती हैं, जिनके शब्दों में सच्चाई की खुशबू और संवेदनाओं की महक होती है। ऐसे ही एक कलम के धनी हैं, वरिष्ठ पत्रकार राजेश द्विवेदी। उनके शब्दों ने न केवल खबरों को जीवंत किया, बल्कि समाज की धड़कनों को भी शब्दों में पिरोया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने शब्दों से उन्होंने न केवल समाचार पत्रों और मीडिया संस्थानों में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि सच की आवाज को भी बुलंद किया। पत्रकारिता की यात्रा में उन्होंने हर पहलुओं पर न केवल काम किया बल्कि एक अलग लकीर खींची। क्राइम से लेकर हेल्थ, इंडस्ट्री, श्रम, राजनीति जैसी बीट पर तो काम किया ही अखबार जगत में डेस्क और फीचर डेस्क पर भी काम किया। राजेश द्विवेदी ने दैनिक जागरण, कानपुर संस्करण में तत्कालीनप्रधान संपादक स्व.नरेन्द्र मोहन और हिन्दुस्तान की पूर्व प्रधान संपादक मृणाल पांडेय, शशि शेखर, संपादक सुनील दुबे, नवीन जोशी की छत्रछाया में पत्रकारिता को धार दी । तो हिन्दुस्तान अखबार में रहते हुए अभावग्रस्त बुंदेलखंड की गरीबी, जलसंकट, पाटा के जंगलों में वनवासियों के दर्द के साथ सूखती नदियों की तस्वीरें खबरों के माध्यम से दुनिया के सामने लाए। कानपुर की गलियों से लेकर देश की राजधानी तक, उनके पत्रकारिता जगत के सफर ने उन्हें ऐसी पैनी नजर दी है जो खबरों की दुनिया में पर्दे के पीछे कीकहानी को देख-परख लेते हैं। तभी तो पत्रकारिता उनके लिए सिर्फ खबरों का संग्रहण करना नहीं, बल्कि समाज के सबसे निचले तबके की आवाज़ को बुलंद करना है। हिंदुस्तान टाइम्स में उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरों को अपनीकलम से संजोया। अपनी लेखनी से पाठकों को वास्तविक खबर के हर पहलू से रूबरू कराया। दैनिक जागरण में उनका काम लोगों के बीच सच की रोशनी फैलाने का रहा तो अमर उजाला में, उन्होंने अपने विचारों की आग को शब्दों में ढाला और उस आग से कई अन्याय और असमानताओं को जलाया। राजेश द्विवेदी का योगदान सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं रहा। बल्कि एक शिक्षक और मार्गदर्शक के तौर पर भी उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को सिखाया कि सच्ची पत्रकारिता सिर्फ तथ्यों को समाज के सामने लाना या प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वहन करना भी है। तभी तो उनके शिष्यों ने उनसे जो भी सीखा, वह आज सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि विचारों की स्वतंत्रता और सच्चाई की खोज में लगे रहते हैं। उनकी नजर सिर्फ वर्तमान पर ही नहीं, बल्कि भविष्य की चुनौतियों और संभावनाओं पर भी रहती आई है। वह जानते हैं कि पत्रकारिता का भविष्य उन हाथों में हो, जो सच्चाई को उसकी पूरीशक्ति के साथ थाम सकें। उनके लेख, उनके विचार, और उनका दृष्टिकोण आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना वर्षों पहले था। उन्होंने हमेशा अपने लेखन में निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और समाज के प्रति अपने दायित्व को सर्वोपरि रखा है। उनकी कलम से निकले शब्द समाज के लिए दर्पण की तरह हैं, जो न सिर्फ सच्चाई को दिखाते हैं, बल्किपाठकों के मन-मस्तिष्क में सवाल भी खड़े करते हैं। राजेश द्विवेदी का जीवन एक ऐसे यायावर यानी घुम्मकड़ का जीवन है, जिसने सच्चाई की खोज में अनगिनत कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनकी लेखनी में सच्चाई का वो तेवर है, जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस रखती है। उनके हर लेख में समाज के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता झलकती है। उनका मानना है कि पत्रकारिता का असल मकसद सिर्फ खबर देना नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की आवाज़ बनना है। उनके लिए परिवार और समाज दोनों ही महत्वपूर्ण रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में जितनी अहमियत परिवार को दी, उतनी ही समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझा। उनके व्यक्तित्व में एक स्नेहिल पिता, एक आदर्श पति, और एक समर्पित पत्रकार की छवि साफ-साफ दिखाई देती है। उनकी लेखनी की ताकत शब्दों में नहीं,बल्कि उन विचारों में है, जो समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है। उनकी कलम से निकले शब्द सिर्फ खबरें नहीं, बल्कि समाज में सच्चाई की बुलंद आवाज़ हैं।आज, जब पत्रकारिता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है,राजेश द्विवेदी सच की राह पर चलते चले जा रहे हैं। वह अपनी कलम से समाज में एक आइने की तरह काम करने का जज्बा रखते हैं। साथ ही उनकी पत्रकारिता भावी पीढ़ी को सच्ची और खरी पत्रकारिता के लिए प्रेरित करती है। बस ये समझ लीजिए कि राजेश द्विवेदी के लिए पत्रकारिता एक मिशन है पैशन है। जिनपर महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं कि पलट देते हैं हममौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से,कि हमने आंधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।