नाव पर क्यों नहीं गई राम की सेना लंका?

नाव पर क्यों नहीं गई राम की सेना लंका?

श्रेणी: विज्ञान | लेखक : द हिन्दू टूडे डेस्क | दिनांक : 06 February 2020 22:29

जब हम राम कथा सुनते हैं तो राम और उनकी वानर सेना की लंका कूच का वर्णन भी सुनते हैं । कई बार आपके मन में भी आता होगा कि समुद्र पार करने के लिए राम ने उस पर पुल क्यों बनवाया। उस समय में पानी की नाव का जिक्र मिलता है तो नाव से ही राम की सेना ने लंका में प्रवेश क्यों नहीं किया ? लेकिन वाल्मीकि की रामायण में इसका भी कारण मिलता है। हमने रामायण या तो फिल्मों में या टीवी पर ही देखी है, जिससे हमारे मन में राम की वानर सेना का एक सीमित आकार बन गया है, लेकिन सच्चाई से काफी अलग थी।

वाल्मीकि रामायण में राम की वानर सेना को इतने विस्तार से बताया गया है कि इसी से अंदाज़ा हो जाएगा कि दरअसल समुद्र पर पुल बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और नाव का सहारा क्यों नहीं लिया गया। असल में राम की वानर सेना का संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसके लिए लाखों या शायद करोड़ों नावों की जरूरत पड़ती। राम की सेना में सिर्फ बंदर ही नहीं थे, बल्कि बड़ी संख्या में रीछ भी शामिल थे। इतनी बड़ी संख्या में नाव मिलना संभव नहीं था। इसलिए राम ने नल और नील को पुल बनाने को कहा। टीवी सीरियल या फिल्मों में वाल्मीकि रामायण के अनुसार संख्या दिखाना असंभव है, इसलिए हमारे मन में भी वानर सेना की संख्या शायद उसी तरह बस गई है, लेकिन असल में इस सेना की संख्या कई लाख थी।

वाल्मीकि रामायण, किताब 4, किष्किंधा कांड, सर्ग 39

सुग्रीव के बुलाने पर लाखों बंदर अपने अपने सैन्य नेता के साथ सुग्रीव के पास पहुंचते हैं। जब राम सुग्रीव को रावण के साथ युद्ध करने का अपना फैसला बताते हैं तो सुग्रीव ऐलान करता है कि धरती के सारे बंदर राम की सेवा में रहेंगे। यहां सुग्रीव कह रहे हैं कि राम की सेना में युद्ध करने के लिए सभी बंदरों को तैयार रहना होगा। जब लाखों वानर सेना वहां पहुंचने लगती हैं तो सुग्रीव राम को इस बारे में सूचना देते हैं, लेकिन जैसे सुग्रीव सूचना दे रहे हैं वहां ज्यादा से ज्यादा वानर सेना वहां जुटती जा रही है।

राम की वानर सेना कई टुकड़ियों में बंटी हुई थी और हर टुकड़ी का एक नेता था। इस तरह वानर सेना के हर समूह को एक वानर नेता चला रहा था। रामायण में विस्तार से इन वानर नेताओं के बारे में और उनकी टुकड़ी की संख्या के बारे में भी लिखा गया है -

शताबली - कई हज़ार करोड़ वानर

तारा - कई हजार करोड़ वानर
गवाक्ष - हजार करोड़ वानर
धुम्रा - दो हजार करोड़ रीछ
पनस - तीन करोड़ वानर
नील - नील सुग्रीव के सेनापति थे जिनकी सेना में दस करोड़ वानर थे। नील के छूते ही पत्थऱ पानी में तैरने लगते थे।
गवय - पांच करोड़ वानर
दारीमुख - हजार करोड़ वानर मैन्द और द्विविद - दोनों में एक हजार करोड़ वानर
गज - तीन करोड़ वानर
जामवंत - दस करोड़ रीछों की सेना के नेता जामवंत सुग्रीव के परम मित्र भी थे। इन्हें सेना के लिए कुटिया बनाने में भी महारत हासिल थी और इन्होंने रामदूत बनकर भी अपनी जिम्मेदारी निभाई थी।
रुमन - सौ करोड़ वानर
गंधमादन - दस हजार करोड़ और सौ करोड़ वानर
अंगद - बाली और तारा के बेटे अंगद किष्किंधा के राजकुमार थे।

वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, अध्याय 28, श्लोक 33 से 38

दस की शक्ति

किष्किंधा कांड, अध्याय 39, धर्मकुटम

राम सेना में शामिल वानरों की सेना को लाखों, अरबों की संख्या में बताया नहीं जा सकता, लेकिन जब ये सब एक साथ सामने रखे जाते हैं तो वे यजुर्वेद तैत्रीय में बताए गए अंकों के रूप में लगते हैं जैसे धर्मकुटम में कहा गया है।

‘एका दश शत सहस्त्र आयुत लक्ष प्रयुत कोटि क्रमश:।
अर्बुदम अबदम खरव निर्खवम महापदमम शंखव तस्मात।।
निधि: का अंतम मध्यम परारधम इति दश गुन उत्तरम समजना:।
समखंख्याह स्थानानम व्यवहारा अर्थम कृता: पूर्वा: इति।।‘

संख्या 17 की दस गुणा ज्यादा शक्ति के लिए संस्कृत में तकनीकी शब्द है जिसे ‘एक शंख’ कहते हैं।

‘एका दश शत सहस्त्र आयुत लक्ष प्रयुत कोटि अर्बुद
अबज खरव निर्खव महापदम शंख जलधि अंत मध्य परार्ध’

एक-100
दस-101
सौ-1002
इसी तरह आगे संख्या बढ़ती जाती है…
परार्ध-1027

भास्कराचार्य के लीलावती में अंक गणित को विस्तार से समझाया गया है।

समुद्र राजा की सलाह और नील की कला

- युद्ध कांड, अध्याय 21 और 22:

इस अध्याय में राम के पुल बनाने की कहानी बताई गई है। जब राम को अपनी सेना के साथ समुद्र पार करना था तो समुद्र ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया। राम ने समुद्र से शांत होने की विनती की, लेकिन समुद्र ने रौद्र रूप धारण किए रखा। इसके बाद राम ने अपना बाण चलाया जिससे समुद्र के सारे जीव-जंतु डर गए। जब राम ने ब्रह्मा का दिया अस्त्र चलाने के लिए उठाया तो समुद्र देवता प्रकट हुए और माफी मांगते हुए कहा कि राम उन पर पुल बना सकते हैं।

- वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, अध्याय 22, श्लोक 43 से 47:

इस अध्याय में समुद्र राम को नील के बारे में बताता है। समुद्र कहता है -

“ प्रतापी आदमी ! यह नल नाम का व्यक्ति बहुत शानदार है, विश्वकर्मा के इस पुत्र को अपने पिता से एक वरदान मिला है जिससे यह खुद विश्वकर्मा के बराबर हो गया है। इस शक्तिशाली वानर को मेरे ऊपर पुल बनाने दो, मैं उस पुल को संभाल लूंगा। यह बिल्कुल अपने पिता जैसा है।”7:

यह बोलने के बाद समुद्र देवता गायब हो गए।
इसके बाद नल ने राम से कहा,
“महान समुद्र देवता ने एक सच्चाई उजागर कर दी है। अब मैं इस विशाल समुद्र पर एक पुल बनाऊंगा उस कला से जो मैंने अपने पिता से ली है।”

वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, अध्याय 22, श्लोक 26:

समुद्र देवता भगवान राम से कहता है, “इसलिए मैं अगाध हूं और मेरा स्वभाव ऐसा ही है कि मुझे पार करना असंभव है। अगर मैं कम गहरा होता हूं तो यह प्राकृतिक होगा। इसलिए मैं आपको खुद को पार करने का ही रास्ता बता रहा हूं।”
काव्य में कई बार अतिश्योक्ति नजर आती है, काव्यात्मक वर्णन में हो सकता है वानर सेना की संख्या के बारे में भी इसी तरह कहा गया हो, लेकिन रोड मार्च यानि पैदल चलकर दुश्मन पर वार करने का तरीका सबसे ज्यादा प्रभावी होता है। इसलिए भी राम ने पुल के जरिए पैदल चलकर ही रावण पर हमला किया।
वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, अध्याय 22, श्लोक 66 से 70 के मुताबिक पुल सिर्फ पांच दिनों में बनाया गया। श्लोक 74 में कहा गया है कि स्वर्ग से संगीतकारों, गंधर्वों ने नल का बनाया पुल देखा जो दस योजन (एक योजन= 13 से 16 किलोमीटर) चौड़ा और सौ योजन लंबा था।
रामायण में लिखे इन वर्णन से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस पुल को बनाने के लिए वानर सेना की निष्ठा और राम नाम की महिमा दिखती है।





https://youtu.be/HqXWstljvmY

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