हिंदू धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। गाय माता की पूजा होती है, घर में बनने वाली पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है और गौ-रक्षा को एक धार्मिक काम माना गया है। इन दिनों गौ-रक्षा को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं और कहानियां भी देखने सुनने को मिल रही हैं, लेकिन गौ-रक्षा करने वाले लोगों को भी इस बात की जानकारी नहीं होगी कि गाय को माता क्यों कहा गया है और गौ-रक्षा को एक पवित्र काम क्यों माना गया है।
हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं की बात कही गई है। कोटि के दो अर्थ होते हैं - प्रकार और करोड़। देवता का शाब्दिक अर्थ होता है- देने वाला। जो आपको बस देना चाहे, आपका कल्याण चाहे और आपके सुख की कामना करे। हम अक्सर 33 करोड़ देवी देवताओं के होने की बात सुनते पढ़ते हैं, लेकिन इसका सही अर्थ है 33 प्रकार के देवी-देवता , जो हमारा कल्याण चाहते हैं। गाय को मां कहने की मान्यता इसी 33 कोटी देवी-देवता में छुपी है। पहले जानते हैं कि ये 33 प्रकार के देवी-देवता कौन से हैं-
आदित्य- ये 12 देव हैं - अंशुमान, आर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु।
वसु – ये देव आठ हैं- आप, धव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाव।
रूद्र - ये 11 हैं - शम्भू, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, सदाशिव, शिव, हर, शर्व, कपाली और भव।
अश्वनी कुमार दो देव हैं।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि ये सभी देव गाय में विद्यमान होते हैं, लेकिन ये सिर्फ मान्यता नहीं है, इसके वैज्ञानिक कारण और प्रमाण हैं। गाय ही सिर्फ ऐसा जीव है तो ऑक्सीजन लेकर ऑक्सीजन ही छोड़ता है। गाय के आसपास रहने भर से ही खांसी, कफ, सर्दी, जुकाम जैसी बीमारियां दूर हो जाती हैं । इसलिए गाय को माता मानने के कारण भी सिर्फ धार्मिक नहीं हैं, बल्कि कारण पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं और वैज्ञानिक तौर पर साबित भी हो चुके हैं।
हमारे शरीर की रचना जिन तत्वों से हुई है और जो तत्व हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं, वो सभी गाय के दूध में पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में ये पाया है कि गाय के दूध में वो सभी 33 तत्व होते हैं, जिनसे हमारा शरीर बना है या जिनकी हमारे शरीर को ज़रूरत होती है। ये 33 वो तत्व हैं, जिनके बिना हम अपने शरीर या अच्छी सेहत की कल्पना नहीं कर सकते। अपने घर में अपनी दादी नानी से भी आपने सुना ही होगा कि गाय का दूध मां के दूध के समान होता है, क्योंकि गाय के दूध में वो सभी पौष्टिक तत्व होते हैं, जो मां के दूध में होते हैं। इन सभी 33 तत्वों को देवता अब आपको बताते हैं वो तत्व और उनका महत्व व ज़रूरत।
हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है, जिन्हें देवता के समकक्ष माना गया है। ये पांच तत्व हैं-
1. पृथ्वी
2. आकाश
3. जल
4. वायु
5. अग्नि
दो तत्व वो हैं ,जो इस शरीर को ऊर्जा यानि शक्ति देते हैं। वो दो तत्व हैं-
6. शर्करा यानि मीठा
7. वसा यानि चर्बी
एक तत्व वह है , जिससे हमारा शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है-
8. प्रोटीन
इसके बाद बारी आती है उन विटामिन्स की जिनकी कमी से शरीर को अलग-अलग तरह की बीमारियों से जूझना पड़ता है -
9. विटामिन ए या रेटिनॉल
10. विटामिन डी
11. विटामिन ई या टोकोफेरॉल
12. विटामिन के या फाइलोक्वीनोन
13. विटामिन बी
14. निकोटिनामाइड
15. पेंटाथेनिक एसिड
16. बायोटिन
17. फोलासिन या फॉलिक एसिड
18. कोलिन
19. विटामिन सी या एस्कोर्बिक एसिड
इसके बाद आते हैं , खनिज जिन्हें अंग्रेजी में मिनीरल्स कहते हैं। ये तत्व हमें खाने से मिलते हैं और हमारे पोषण के लिए बेहद जरूरी होते हैं-
20. सोडियम
21. क्लोरीन
22. कैल्शियम
23. फास्फोरस
24. पोटेशियम
25. मैग्नीशियम
26. सल्फर
27. आयरन
28. जिंक
29. आयोडीन
30. तांबा
31. कोबाल्ट
32. मैगनीज़
33. फ्लोरीन
ये 33 तत्व हैं जिन्हें हम 33 प्रकार के देवी-देवता भी कह सकते हैं, क्योंकि इनसे हमारा शरीर बना है और ये हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं। अगर इनमें से एक भी देवी-देवता नाराज़ हो जाता है तो उसका नुकसान हमें बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ता है। यानि एक भी तत्व की कमी का असर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास पर होता है।
33 तत्व और 33 कोटि देवी-देवता
ये तो हमने जान लिया कि इन 33 प्रकार के तत्वों को देवी-देवता माना गया है और गाय को माता मानने के पीछे का विज्ञान यह है कि ये सभी तत्व गाय के दूध में पाए जाते हैं। अब हमारे लिए ये समझना जरूरी है कि शरीर में मौजूद इन 33 प्रकार के तत्वों में वो कौन सी खूबियां हैं जिनकी वजह से इन्हें भगवान के समकक्ष माना गया है और गाय में ये किस तरह से शामिल होती हैं।
सबसे पहले बात करते हैं आयोडीन की। कई देवी देवता की विशेष पूजा के लिए एक दिन निश्चित होता है जैसे राम नवमी, हनुमान जयंती, शिवरात्रि, इसी तरह आयोडीन को अगर देवता मानें तो इनका विशेष दिन 21 अक्टूबर को ‘विश्व आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस’ है। आयोडीन देवता थोड़ी सी ही भक्ति से खुश हो जाते हैं, मतलब बहुत कम मात्रा में ही अगर लिया जाए तो भी शरीर को फायदा ही पहुंचाता है, हालांकि आयोडीन पूरे शरीर में होता है। आयोडीन का तेज सबसे ज्यादा थायरॉयड नामक ग्रंथि पर पड़ता है। आयोडीन मिलते ही थायरॉयड ग्रंथि हॉर्मोन का उत्पादन करने लगती है, जिन्हें टी 3 (टाईआयोडोथायरोनिन) व टी 4 (टेट्राआयोडोथायरोनिन) के नाम से जाना जाता है। ये दोनों हॉर्मोन बहुत गुणकारी होते हैं, शरीर का मेटाबॉलिज़्म इन्हीं दो हॉर्मोन पर निर्भर करता है। लेकिन आयोडीन देवता के साथ टायरोसीन देव का होना भी जरूरी है। ये दोनों मिलकर मोनोआयोडोटायरोसीन व डाईआयोडोटायरोसीन बनाते हैं जो टी-3 और टी-4 के रूप में थायरॉयड ग्रंथि में रहते हैं। ये दोनों हॉर्मोन मेटाबॉलिज्म और शरीर के विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं।
आजकल महिलाओं में प्रजनन संबंधी परेशानियां बहुत आम हो गई हैं। इसके लिए भी बहुत हद तक आयोडीन ही जिम्मेदार है। आयोडीन की कमी से टी-3, टी-4, टीएसएच हॉर्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे महिलाओं को कंसीव करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। आयोडीन से ही मस्तिष्क का विकास और संचालन होता है। इसकी कमी से थकावट महसूस होती है और व्यक्ति की काम करने की ताकत कम हो जाती है। हमारे शरीर में सिर्फ 10-12 मिलीग्राम आयोडीन होता है लेकिन इसके बिना जिंदा रहना संभव नहीं है। अच्छी सेहत के लिए व्यक्ति को रोज़ करीब 150 माइक्रोग्राम यानि कि सुई की नोक के बराबर आयोडीन चाहिए होता है।
शरीर में आयोडीन की जरूरत को पूरा करने के लिए आयोडीन युक्त नमक खाने की बात कही जाती है , लेकिन देखा जाए तो खानपान की आदतों से ही आयोडीन की कमी को पूरा किया जा सकता है। आयोडीन वाले आहार जैसे मूली, गाजर, टमाटर, पालक, आलू, मटर, मशरूम, प्याज, केला, स्ट्रॉबेरी, अंडे की जर्दी, दूध, पनीर, कॉड लिवर तेल और समुद्र से मिलने वाले आहार को खाने से आयोडीन की कमी पूरी होती है। नमक में मिलाए जाने वाले आयोडीन से बेहतर होता है प्राकृतिक रूप से इन चीजों में मिलने वाला आयोडीन। सभी तरह के नमक में भी सेंधा नमक सबसे बेहतरीन होता है।
लेकिन ऐसा भी नहीं कि आयोडीन वाला खाना खाने से ही आयोडीन देवता खुश हो जाएंगे। कई खाने की चीजें ऐसी भी हैं, जिनको आप अगर ज्यादा मात्रा में खाएंगे तो आयोडीन देवता रूठ सकते हैं। सरसों वाली कई सब्जियां ऐसी हैं जो शरीर में आयोडीन की मात्रा को कम भी करती हैं। इन्हें गोइट्रोजन कहते हैं। पत्तागोभी और सरसों के साथ ही सोयाबीन, अलसी, कच्ची मटर व कच्ची मूंगफली में गोइट्रोजन पाया जाता है। इसलिए इन चीजों को कभी कच्चा नहीं खाना चाहिए।
मां के दूध में भी आयोडीन पाया जाता है। मां के दूध में 150 माइक्रोग्राम आयोडीन प्रति लीटर पाया जाता है, जबकि गाय के दूध में 300 माइक्रोग्राम आयोडीन प्रति लीटर पाया जाता है। यानि अगर आप रोज़ आधा लीटर गाय का दूध पीते हैं तो शरीर में आयोडीन की जरूरत पूरी हो जाएगी।
विटामिन ए
विटामिन ए हमारी आंखों की रोशनी के लिए बहुत जरूरी होता है। इसकी कमी से आंखों की रोशनी जा भी सकती है। ‘रेटिनल’ विटामिन ए का वह रूप है जो ‘ऑप्सिन’ नाम के प्रोटीन के साथ मिलकर ‘रोडोप्सिन’ बनाता है, यही रोडोप्सिन हमें अंधेरे में या कम रोशनी में देखने में मदद करता है। विटामिन ए फैट में घुल जाता है और इसके कई रूप होते हैं जैसे रेटिनल, रेटिनॉल, रेटिनॉइक एसिड आदि। बीटा कैरोटीन भी विटामिन ए का एक रूप होता है या कह सकते हैं कि बीटा कैरोटीन ही विकसित होकर विटामिन ए में बदलता है। विटामिन ए पेड़-पौधों में भी पाया जाता है और पशुओं में भी। मांसाहारी खाने में ये रेटनाइल पामिटेट के रूप में पाया जाता है जो पचने के बाद पहले रेटिनॉल में बदलता है फिर रेटिनल में। अंडे, चीज़ के अलावा पीले रंग के फल सब्जियों में विटामिन ए होता है।
अब बात करते हैं विटामिन एक की जरूरी मात्रा की। एक पुरुष को दिन भर में 0.7 मिलीग्राम विटामिन ए चाहिए और एक महिला को 0.6 मिलीग्राम। विटामिन ए की अधिकता से टॉक्सिसिटी भी हो सकता है जिसका नुकसान, आंखों, हड्डियों और त्वचा पर होता है।
जिस विटामिन ए की जरूरत हमारे शरीर इतनी ज्यादा होती है वो गाय के दूध में पाया जाता है। गाय के दूध का पीलापन इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन की वजह से ही होता है। यह बीटा कैरोटीन भैंस के दूध में नहीं होता तभी वो सफेद होता है। बकरी और भेड़ के दूध में भी यह नहीं पाया जाता है। जब गाय के दूध में भैंस के दूध की मिलावट का पता करना होता है तो बीटा कैरोटीन की मात्रा की ही जांच की जाती है।
सोडियम और क्लोरीन
सोडियम और क्लोरीन मिलकर बनता है नमक। तो हम जानेंगे नमक देवता के बारे में। नमक मुख्य तौर से तीन तरह का होता है- साधारण नमक, सेंधा नमक और काला नमक ।
आमतौर से घरों में जो नमक इस्तेमाल होता है, उसमें दूसरे खनिज मिलाए जाते हैं, जिनमें एन्टी केकिंग एजेंट भी होता है, जो नमक को जमने से रोकता है। सेंधा नमक को हम रॉक सॉल्ट के नाम से भी जानते हैं। हिंदू व्रत त्योहारों में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। यह मोटा नमक होता है और इसमें एंटी केकिंग एजेंट नहीं होता। इसमें सोडियम और क्लोरीन की मात्रा साधारण नमक से कम होती है, लेकिन इसमें 94 तरह के खनिज मिले हुए होते हैं, जबकि साधारण नमक में ये प्राकृतिक खनिज सिर्फ तीन होते हैं।
आयुर्वेद में नमक को तीन तरह के दोष को दूर करने वाला बताया है। यह दिल के मरीजों के लिए अच्छा होता है, डायबिटिज़ के मरीज़ों के लिए भी जरूरी है और हड्डियों की बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस से भी बचाव करता है।
कम ही लोगों को पता होगा कि नमक डिप्रेशन और तनाव को कम करने के लिए एक सफल दवा है। नमक मांसपेशियों में खिंचाव को कम करता है, हाथ-पैर को सुन्न होने से बचाता है, ब्लड प्रेशन को कंट्रोल करता है, ब्लड वेसल को लचीला बनाता है, पाचन में सहायता करता है, त्वचा की कई बीमारियों को ठीक करता है, गठिया की परेशानी को दूर करने में भी सहायता करता है, गुर्दे के रोगियों के लिए भी अच्छा होता है। काला नमक हल्के गुलाबी से रंग का होता है। यह नमी आसानी से पकड़ता है और इसमें सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें आयरन होने से इसका रंग जल्दी कालापन ले लेता है। इसमें हालांकि सोडियम कम होता है लेकिन अपच, कब्ज, अफारा, गैस में आराम देता है।
अब इतना गुणकारी नमक जिन दो चीजों से बनता है यानि सोडियम और क्लोरीन, उसका दूध से क्या संबंध ? दरअसल ये दोनों ही चीजें मां के दूध में होती ही हैं, लेकिन इसके अलावा गाय के दूध में भी ये दोनों तत्व पाए जाते हैं। मां और गाय के दूध में क्लोरीन कैल्शियम के साथ मिलकर होता है। बकरी के दूध में भी ये होता है लेकिन सोडियम के साथ, इसलिए बकरी का दूध स्वाद में कुछ खारा सा होता है। आमतौर से गाय के एक किलो दूध में सोडियम 440 मिलीग्राम सोडियम और 880 मिलीग्राम क्लोरीन होता है।
आयरन
हमारे शरीर में मौजूद आरयन का 90 प्रतिशत प्रोटीन के साथ मौजूद होता है। ये दोनों मिलकर शरीर में हीमोग्लोबिन बनाते हैं। 100 ग्राम हीमोग्लोबिन में 340 मिलीग्राम आयरन होता है और यह ट्रांस्फेरिन बनकर शरीर में घूमता है। यह स्प्लीन, जिगर, गुर्दे, बोन मैरो में फेरिटिन बनकर रहता है। हीमोग्लोबिन के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। हीमोग्लोबिन के कमी से बीमारियों से लड़ने की हमारी क्षमता कम होती है इसलिए डॉक्टर हीमोग्लोबिन का लेवर कंट्रोल करने पर जोर देते हैं। विशेषतौर से गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों में हीमोग्लोबिन की अधिक मात्रा उनकी अच्छी सेहत के लिए जरूरी है।
गाय के एक लीटर दूध में 0.28 मिलीग्राम आयरन पाया जाता है। यानि एक और देवता- आयरन देवता भी गाय के दूध में विद्यमान होते हैं।
विटामिन बी12
जिस तरह के दुर्गा के कई रूप होते हैं उसी तरह विटामिन बी12 के भी कई रूप होते हैं। विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी6 और विटामिन बी12 जिसे कोबालामिन भी कहते हैं। कोबालामिन तीन अवस्थाओं में होता है- हाईड्रॉक्सिकोबालामिन, साइनोकोबालामिन और मिथाईलकोबालामिन। ब्रेन और नर्वस सिस्टम के ठीक से काम करने और रेड ब्लड सेल्स के निर्माण में विटामिन बी12 बहुत काम करता है। कुछ विशेष बैक्टीरिया होते हैं जो विटामिन बी12 बनाते हैं। यह बैक्टीरिया सिर्फ पशुओं के अंदर पाए जाते हैं इसलिए ये मांस, मछली और डेरी उत्पाद में पाया जाता है।
एक स्वस्थ व्यक्ति को सिर्फ 2.4 माइक्रोग्राम विटामिन बी12 रोज चाहिए होता है। गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को थोड़ा ज्यादा विटामिन बी12 की जरूरत होती है। इसकी कमी से सिर्फ एनीमिया ही नहीं बल्कि डिप्रेशन और मेमोरी लॉस जैसी परेशानी भी होती है। शाकाहारी लोगों में विटामिन बी12 की अक्सर कमी पाई जाती है क्योंकि ये ज्यादातर मांसाहारी खाने में होता है। लेकिन सोचिए ये विटामिन बी12 भी गाय के दूध में पाया जाता है। गाय के एक लीटर दूध में 5 माइक्रोग्राम विटामिन बी12 होता है। मतलब एक व्यक्ति अगर हर रोज़ आधा लीटर ही गाय का दूध पी ले तो उसकी विटामिन बी12 की जरूरत पूरी हो जाएगी।
कार्बोहाईड्रेट
शर्करा यानि कार्बोहाईड्रेट ऐसे देवता हैं, जो कम हो जाए तो शक्ति खत्म और ज्यादा हो जाए तो डायबिटीज़ की बीमारी । कार्बोहाईड्रेट के कई रूप हैं जैसे मोनोसैकराइड, डाईसैकराइड, ट्राईसैकराइड, टैट्रासैकराइड व पोलीसैकराइड । मगर हम यहां डाईसैकराइड के एक विशेष रूप के बारे में ही बताएंगे जो दूध में पाया जाता है। इसे लैक्टोज कहते हैं।
लैक्टोज ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज से बनता है। गैलेक्टोज ब्रेन डेवल्पमेंट के लिए बहुत जरूरी होता है। इसलिए मस्तिष्क के विकास के लिए मां के दूध को बेहद जरूरी माना जाता है और मां के दूध के अलावा लैक्टोज गाय के दूध में पाया जाता है। पशुओं में भी इस तत्व का महत्व है, जो पशु ज्यादा दिन तक अपनी मां के साथ घूमते हैं वो ज्यादा बुद्धिमान पशुओं की श्रेणी में आते हैं जैसे हाथी। मानव, घोड़े व हाथी के दूध में लैक्टोज सात प्रतिशत पाया जाता है, जबकि गाय, भेड़ व बिल्ली में 4.5 प्रतिशत। घोड़े और हाथी में दूध उत्पादन उतना ही होता है, जितना उनके नवजात की जरूरत होती है, लेकिन गाय ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन करती है, जिससे हम इंसान भी उसका सेवन कर सकते हैं।
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