ह म हर विशेष पूजा में और हर रोज़ की पूजा में भगवान को भोग लगाते हैं। भोग लगाते वक्त उसके चारों ओर गंगाजल छिड़कने की भी परंपरा है। कई लोगों का मानना है कि जल छिड़कने का उद्देश्य भोग या प्रसाद को चींटियों और दूसरे कीड़ों से बचाना होता है। लेकिन अगर हम अपने वेद-पुराण पढ़ें तो जानेंगे कि इन परंपराओं का गहरा अर्थ है।
भागवतगीता और योग शास्त्र में भोजन को उनके गुणों के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा है। सत गुण, रज गुण और तम गुण के आधार पर सात्विक, राजसिक और तामसिक।
सात्विक भोजन शांति और पवित्रता देता है और उम्र, बुद्धि, ताकत, सेहत, खुशी को बढ़ाता है। फल, सब्जियां, पत्ते, अनाज, दाल, दूध, शहद आदि सात्विक भोजन हैं। ये आहार इसी तरह खाए जा सकते हैं। एक इंसान सात्विक भोजन करके अपना पूरा जीवन बीता सकता है।
राजसिक भोजन में नकारात्मकता, उन्माद और बैचेनी के गुण होते हैं। गर्म, तीखा, खट्ठा और ज्यादा नमक वाले मसालेदार खाने की चीजें राजस गुणों को लिए होती हैं।
तामसिक भोजन में नींद, अज्ञानता, उन्माद और नीरसता के गुण होते हैं। मांसाहार, प्याज, लहसुन और बासी खाना इस श्रेणी में आते हैं।
भगवान को सिर्फ सात्विक खाने का भोग लगाया जाता है। राजसिक और तामसिक भोजन से कभी भी भगवान को भोग नहीं लगाया जाता। रामायण में रावण और कुंभकरण को तामसिक और राजसिक भोजन करवाया जाता था। दोनों ही बुरे गुण वाले रावण थे। कुंभकरण तमस और रावण राजस या आक्रामकता के प्रतीक माने जाते थे। तामसिक और राजसिक भोजन को हल्की आंच पर पकाने या सारी रात पानी में रखने से उसे सात्विक भोजन में बदला जा सकता है। जैसे अंकुरित दाल या चना।
शहद, दूध घी, दही और चीनी को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। इन सभी पांच खाद्य पदार्थ में सात्विक गुण हैं और इन्हें खाने से सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आयुर्वेद में भी कहा गया है कि जो भी खाद्य पदार्थ ज़मीन के अंदर उपजते हैं वे तामसिक होते हैं और जो पेड़ पर लगते हैं वे सात्विक गुण लिए होते हैं जैसे फूल, पत्ते, फल। सात्विक भोजन ताज़ा, मौसम के मुताबिक और खुद उगाए गए होते हैं।
इंसान शरीर, मस्तिष्क और आत्मा से बना है। आत्मा को ईश्वर के समान माना गया है। इसलिए हम कह सकते हैं कि जो भी बाहरी भगवान को अर्पित किया जाता है अगर वही हम अपने अंदर के भगवान को दें तो अपने मिलने वाली खुशी भी आत्मिक होगी। इसलिए खुद खाने से पहले भगवान को भोग लगाने का उद्देश्य है कि हम भी सिर्फ सात्विक खाना ही खाएं या अगर पूरा सात्विक नहीं तो कम से कम हमारे रोज़ के खाने में एक बड़ा भाग सात्विक भोजन का भी हो। भोग लगाने के लिए जब सात्विक खाना बनाया जाता है तो इंसान बाद में वो खाना खुद खाता है, ये उसका पूरा भोजन भी हो सकता है वर्ना कम से कम उसके भोजन का एक हिस्सा तो हो ही सकता है।
अब बात करते हैं भोज के चारों ओर जल छिड़कने की। यह खाने को पवित्र करने के लिए किया जाता है। कई लोग भोग और चढ़ावे में फर्क नहीं कर पाते। भोग हम भगवान के साथ बांटते हैं, जबकि चढ़ावा हम अपनी बीमारी या नकारात्मकता भगवान को अर्पित करते हैं और प्रसाद के रूप में खुशी लेकर वापस लौटते हैं। कई लोग तर्क देते हैं कि भैरों बाबा को तो शराब भी चढ़ाई जाती है जबकि वो सात्विक नहीं है। लेकिन देखा जाए तो शराब भोग के रूप में नहीं बल्कि चढ़ावे के रूप में चढ़ाई जाती है जिसका मतलब यही होता है कि वे लोग जो शराब पीते हैं अपनी ये बुरी आदत भैरों बाबा को चढ़ा रहे हैं ताकि उन्हें इससे छुटकारा मिले।
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