देवी के सभी अवतारों में मां काली का अवतार सबसे अलग है। जीभ बाहर निकाले मां काली गले में 52 नरमुण्डों की माला पहने भगवान शिव पर पैर रखकर खड़ी हैं। देवी का यह अवतार विध्वंसकारी लगता है। देवी महात्मय ग्रंथ में बताया गया है कि काली का यह रूप एक ऐसी स्थिति से निपटने के लिए लिया गया जो काबू से बाहर हो रही थी। इस ग्रंथ में इससे जुड़ी एक कहानी है। मां दुर्गा ने खुद काली का यह रुप राक्षस ‘रक्तबीज’ को मारने के लिए लिया था। इस राक्षस को एक वरदान मिला हुआ था, जिसके मुताबिक अगर उसके खून की एक भी बूंद धरती पर गिरती है तो उससे उसी के दो अन्य रूप पैदा हो जाएंगे। यानि रक्तबीज का एक बूंद खून दो रक्तबीज पैदा कर देगा।
जब रक्तबीज ने आम लोगों पर अत्याचार करना शुरू किया तो देवी देवताओं ने इस अत्याचार को रोकने के लिए उसे मारने की कोशिश की। दुर्गा ने अपनी मैत्रिका सेना के साथ रक्तबीज पर प्रहार किया, लेकिन इससे स्थिति और भी मुश्किल हो गई क्योंकि जैसे ही रक्तबीज का खून जमीन पर पड़ता, दो रक्तबीज और पैदा हो जाते और देखते ही देखते सैकड़ों रक्तबीज पैदा हो गए। तब दुर्गा ने मां काली को बुलाया जिन्होंने युद्धभूमि पर अपनी जीभ फेरकर रक्तबीज का सारा खून अपने अंदर ले लिया। उन्होंने रक्तबीज को मारकर उसका खून पी लिया जिससे रक्तबीज की मौत हो गई। यहां काली की जीभ को एक हथियार की तरह बताया गया, जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि अंत में प्रकृति हर चीज़ से उसका जीवन ले लेती है। कहा यह भी जाता है कि असल में मां दुर्गा ने खुद ही काली का रूप लिया था ताकि वह रक्तबीज का खात्मा कर सके।
देवी महात्मयम में प्रचलित कहानी की मानें तो मां काली के जीभ बाहर निकले रहने का कारण काफी घरेलू है। हुआ यह है कि दारुका नाम के राक्षस को मारने के बाद काली ने उसका खून पिया, लेकिन उसे पीने के बाद काली को और ज्यादा खून पीने की प्यास लगी। वह खून की तलाश में इधर-उधर घूमने लगीं। इससे डरकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे विनती की कि वह किसी तरह काली को रोकें। काली को रोकने के लिए शव उनके रास्ते में लेट गए, जैसे काली का पैर शिव के ऊपर पड़ा, उन्हें देखकर शर्म से उनकी जीभ बाहर निकल आई। उन्हें शर्म आई कि खून की प्यास में वह खुद अपने पति को नहीं पहचान पाई और उन पर पैर रख दिया।
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