श्रेणी: धार्मिक संंस्थान | लेखक : Admin | दिनांक : 18 August 2022 19:14
द्वारकाधीश मंदिर :
भारत के उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित भगवान श्रीद्वारकाधीश का मंदिर देश के प्रसिद्व मंदिरों में से एक है। यह मंदिर वल्लभ संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। खास बात यह है कि श्रीद्वारकाधीश मंदिर में भगवान के बाल रूप में दर्शन होते हैं। मंदिर में विराजमान प्रतिमा में एक आकर्षण है, जिसकी वजह से प्रभु के दर्शन करने से मन भरता ही नहीं है। जिस भक्त ने भी एक बार रत्नजटिल श्रृंगार की झांकी के दर्शन कर लिए, फिर तो उसकी लालसा तीव्र हो उठती है और बार-बार प्रभु के दर्शन की इच्छा मन में उठती है।
भक्त इनको राजाधिराज कहते हैं। इनकी छवि के दर्शन दिन भर में आठ बार होते हैं। भक्त आठ बार के दर्शनों को भी करते नहीं अघाते। आठ बार के दर्शन को झांकी कहते हैं, इनकी विशेषता यह है कि प्रत्येक झांकी में भगवान का श्रृंगार और वस्त्र वेषसज्जा सब परिवर्तित होते हैं और एक विशेष प्रकार का आकर्षण यहां की सेवा प्रणाली की ही विशेषता है।
इसलिए मंदिर दूसरों से है खास :
मंदिर के समस्त जगमोहन का भाग या मण्डप छत्र के आकार का है, यह भी बड़ी विचित्रता से बना है। शिल्प शास्त्र का मंदिर एक भव्य उदाहरण है। आंगन में चढ़कर समतल भूमि भी उसी प्रकार है, जैसे प्रांगण की प्रदशिणा पर मण्डप के समीप पहुंचने के लिए थोड़ी ऊंचाई है। खम्भों पर यह मण्डप टिका हुआ है। ऊपर के भाग में गोल गुम्बद के ऊपर सुवर्ण का शिखर निकला हुआ है। उसके पश्चिम में उतार चढ़ाव के तीन शिखरहै, जिनके नीचे राजाधिराज भगवान का विग्रह विराजमान है।
मंदिर में बनी चित्रों की छवि सहसा दृष्टि को आकृष्ट कर लेती है। मंदिर की चित्र झांकी न केवल मात्र चित्रों का प्रदर्शन है, बल्कि भारत की संस्कृति की परिचायिका है। लाल हरे पीेले गहरे रंग से रंग खम्भों पर छह फुट की ऊंचाई से ही यह चित्र प्रारंभ हो जाते हैं। जिन पर श्रीमद्भागवत पुराण में तथा भक्तों के ग्रंथों में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण की एवं गोप गोपियों की मनोहारी लीलाएं हैं। राजाधिराज की ओर मुखकर के खड़े होने पर भगवान के जन्म के समय पधारे देवगणों के दर्शन है, जो मथुरा के कंस के कारागार में पधारे थे और जिनकी स्तुति को गर्भस्तुति कहा जाता है, चित्रित हैं।
इस जन्म के दर्शन ही भगवान श्रीद्वारकाधीश जी के रूप में है। चार भुजा के रूप में द्वारिका में प्रत्यक्ष है। अवतार के समय भगवान चतुर्भुज थे और वहीं झांकी श्रीद्वारकाधीश की है। यशोदा जी के पास वसुदेवजी का गमन-योगमाया का दर्शन तथा ब्रजगोकुल की सुमग्र लीलाएं जैसे - पूतनावध, शकटासुर वध, तुणावर्तवध, यमलार्जुनमोक्ष, वत्सासुर-बकासुर-अघासुर-प्रलम्बासुर वध, रासलीला, गोवर्धनधारण, चीरलीला आदि के दर्शन की तृप्ति होती है।
- ग्वालियर से इस तरह मथुरा पहुंचे श्रीद्वारकाधीश :
मंदिर का निर्माण कराने वाले गाेकुलदास पारिख थे। जो गुजरात राज्य के बड़ौदा स्थित सीनौर के निवासी थे तथा कांकरौली (राजस्थान) पीठ के गोस्वामिवंश के अनुयायी सेवक थे। श्रीपारिख नागर वैश्य जाति के थे। वाल्यावस्था में पारिख जी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पारिख जी को बचपन में ही अपना पैतृक घर छोड़ना पड़ा था। पारिख जी तरह-तरह के कष्ट उठाते हुए बड़ौदा के सेठ कौशलचंद्र अम्बाईदास की नजर में आए। पारिख जी की चतुराई और कुशल व्यवहार से सेठ कौशलदास को व्यापार में बड़ी सहायता मिली। कौशलदास सेठ, दौलतराव सिंधिया के निजी विश्वास पात्र मित्रों में हुआ करते थे। एक बार सेठ जी ने पारिख जी की बुद्धि चतुराई सिंधिया को सुनाई। जिसके बाद सिंधिया ने सेठ से पारिज जी को मांग लिया। राजादेश शिरोधार्य किया और पारिख जी को महाराजा की सेवा में छोड़ दिया। जहां उन्हें खजाने का काम सौंपते हुए मुख्य खजांची का पद दिया गया।
उसी दौरान पारिख जी एक मंदिर निर्माण के लिए नीव खुदवाने का कार्य करवा रहे थे। तभी श्रमिकों को जमीन में फावड़ा मारने के साथ ही एक ध्वनि सुनाई दी। जिसके बारे में उन्हाेंने पारिख जी को बताया। पारिख जी मौके पर पहुंचे तो उन्होंने भी ध्वनि को सुना। काम को रुकवाते हुए विश्राम करने घर पहुंचे। रात्रि स्वप्न में पारिखजी को एक सुन्दर दिव्य श्रीविग्रह एक पात्र में दिखाई दिया, जो जमीन के अंदर गढ़ा हुआ है। दूसरे दिन श्रमिकों को लेकर पारिखजी उसी स्थान पर पहुंचे और खुदाई शुरू कराई थी। जिसमें श्रीद्वारकाधीश जी का विग्रह निकला। अद्भुद विग्रह देखकर पारिखजी गद्गद हो गए। पारिखजी ने कुछ दिन खुदाई में निकले दोनों छोटे बड़े विग्रह को एक मंदिर में विराजमान किया। जिसमें से छोटा विग्रह आज भी लश्कर (ग्वालियर) में विराजमान है। उसे भी द्वारिकाधीश कहते हैं, लेकिन कुछ दिनों के बाद भगवान ने पारिखजी को फिर स्वप्न दिया और उन्हें ब्रज में पहुंचाया जाए। उसके बाद पारिखजी श्रीद्वारकाधीश विग्रह को लेकर ब्रज पहुंचे। पहले वृंदावन पागल बाबा के मंदिर के पास बगीचा में द्वारकाधीश के विग्रह को विराजमान किया। कुछ दिनों के बाद उसी विग्रह को मथुरा श्रीद्वारकाधीश में विराजमान किया।
- भारतीय वास्तुशास्त्र के तहत हुआ है मंदिर का निर्माण :
मथुरा में श्रीद्वारकाधीश महाराज के मंदिर का पाटोत्सव जुलाई वर्ष 1894 आषाणढ़ कृष्ण अष्टमी को मनाया गया। नाना प्रकार के वाद्य ढोल नगाड़े और हाथी ऊंट घोड़ी से बड़ी भव्य शोभायात्रा निकाली गई। बहरहाल, मंदिर का निर्माण भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार करवाया गया था। यह भी विचार कर मुहूर्त पर विशेष बल दिया गया था कि ब्रज में जितने भी मंदिरों का निर्माण हुआ है, वह चिरकाल तक अपनी समृद्धि सुरक्षित नहीं रख सके। मंदिर आज भी अपनी भव्यता बिखेरे हुए है।
- राजाधिराज की झांकी :
द्वारकाधीश मंदिर में आठ झांकी के दर्शन होते हैं। मथुरा नगर का यह एक मात्र ऐसा पुष्टि मंदिर है, जिसमें दर्शन का समय निर्धारित है और ठीक समय पर दर्शन खुलते का एक मानक है। किसी विशेष अवसर पर भी यह दर्शन में कभी विलम्व से नहीं खुलते।
- झांकी का नाम - खुलने का समय
मंगला - सुबह 6.30 से 7.30 बजे तक
श्रृंगार दर्शन - 7.40 से 7.55 बजे तक
ग्वाल भोग - 8.25 से 8.40 बजे तक
राजभोग - 10 से 10.30 बजे तक
उत्थापन - 3.45 4.20 बजे तक
भोग - 4.45 से 5.05 बजे तक
संध्या आरती - 5.20 से 5.40 बजे तक
शसल - 6.30 से 7.30 बजे तक
(नोट - मौसम के अनुसार समय में थोड़ा बदलाव किया जाता है, जिसकी सूचना मंदिर पर चस्पा कर दी जाती है।)
- सावन में घटा रहती हैं मुख्य आकर्षण का केंद्र -
श्रावण मास में झूलाओं की छटा ब्रज की अपनी विशेषता है। फिर राजाधिराज के सोने चांदी के झूले तो विश्व-विख्यात हैं। श्रीद्वारकाधीश के साथ ही मुरलीधर और स्वामिनीजी के विग्रह को यह लाड़ लडाया जाता है। राजाधिराज विग्रह तो अचल है। एक मास में जैसी घटा होती है, मंदिर के जगमोहन को वैसे ही वस्त्रों से सजाया जाता है और विद्युतदीप भी वैसे रंग के किए जाते हैं।
कालीघटा -
यूं ताे द्वारकाधीश मंदिर में आधा दर्जन से अधिक तरह की घटा के दर्शन होते हैं, उनमें केसरी घटा, हरि घटा, सोसनी घटा, आसमानी घटा, गुलाबी घटा, लाल घटा, श्याम काली घटा, सफेद घटा आदि शामिल हैं। इनमें भी सबसे अधिक काली घटा आकर्षण का केंद्र होती है। आप यह कह सकते हैं कि सावन की कालीघटा विशेष दर्शनीय होती है। मण्डप में विद्युत गर्जन और तारागण तथा चंद्रमा की छवि तथा समग्र काले वस्त्र से वेष्टित मंदिर और श्रीविग्रह एक विशेष आकर्षण बन जाता है। ब्रज के ग्रामीण क्षेत्रों से भी हजारों भक्त दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं।
मंदिर में नहीं चढ़ाए जाते बाहर के फूल :
राजाधिराज भगवान पर बाहर से आऐ हुए पुष्प भी नहीं चढ़ाए जाते हैं। पुष्पों की माला बनाने का एक निश्चित स्थान है।
वहां नियुक्त व्यक्ति ही स्वच्छ धुले धागों में पिरोई पुष्पमाला तैयार करते हैं और केवल सेवादार पंडित जी ही उसे धारण कराते हैं। अधिक माला भी नहीं चढ़ाई जाती हैं और न पुष्पवृष्टि की जाती है। मंदिर में पर्वों पर पुष्प बंगला भी अपरस में रखाये जाते हैं।
मंदिर के मीडया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि वृंदावन में पागल बाबा मंदिर के पास बने बगीचे के पुष्प ही राजाधिराज को चढ़ाए जाते हैं। क्योंकि यहां पर भगवान के बाल रूप की पूजा अर्चना होती है। अधिक फूल परेशानी का कारण बन सकते हैं। एक बच्चे की जिस तरह से देखरेख की जाती है। ठीक उसी तरह से द्वारकाधीश की देखरेख की जाती है। बच्चे को कोई परेशानी न हो। इसलिए अधिक देर तक दर्शन भी लगातार नहीं होते हैं।
मंदिर में आनलाइन नहीं लिया जाता दान :
श्रीद्वारकाधीश मंदिर के मीडया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि जिन भक्तों को मंदिर में दान करना है, उनका मंदिर आने पर ही दान स्वीकार किया जाता है। आनलाइन दान मंदिर प्रशासन स्वीकार नहीं करता है। इसलिए श्रद्धालु स्वयं मंदिर पहुंचकर प्रभु के दर्शन कर पुण्य लाभ कमाएं और जो भी दान करना हो, वह करें।
- इस तरह पहुंचे मंदिर :
मथुरा बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन जंक्शन, भूतेश्वर तथा छावनी से मंदिर तक सीधे रिक्शे की सुविधा है। यहां आटो, ई रिक्शा यमुना तट तक पहुंचाते हैं। रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से मंदिर की दूरी तीन से चार किलोमीटर की है।
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