भगवान गणेश की सूंड के बारे में यह जानना है जरूरी

भगवान गणेश की सूंड के बारे में यह जानना है जरूरी

श्रेणी: धार्मिक संंस्थान | लेखक : द हिन्दू टुडे डेस्क | दिनांक : 06 February 2020 22:38

गवान गणेश की सूंड के बारे में यह जानना है जरूरी

भगवान गणेश की सूंड दांयी ओर है या बांयी ओर, यह अक्सर हम सूंड की नोक को देखकर तय करते हैं। लेकिन अगर हम अपने वेद और शास्त्रों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि यह आंकलन ही गलत है।

आमतौर से माना यह जाता है कि भगवान गणेश की सूंड किस ओर मुड़ी है इसका फैसला सूंड के निचले हिस्से यानि नोक पर निर्भर होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। सूंड जिस दिशा में हो उसी दिशा में भगवान गणेश की मूर्ति की दिशा तय नहीं होती। बल्कि सूंड का ऊपरी हिस्सा जिस ओर मुड़ा हो उस ओर ही उस प्रतिमा की सही दिशा माना जानी चाहिए। अगर प्रतिमा की सूंड का ऊपरी हिस्सा बांयें ओर है और सूंड का निचला हिस्सा दांयीं ओर है तो प्रतिमा को बांयी ओर की दिशा में घूमा ही माना जाएगा। इसका कारण है कि अगर सूंड का शुरूआती हिस्सा दांयीं ओर है तो वह सूर्य की ओर इशारा करता है और बताता है कि गणपति की नाड़ी इस वक्त सक्रिय अवस्था में है।

दांयी तरफ मुड़ी सूंड

जिन गणेश प्रतिमा की सूंड दांयी ओर मुड़ी होती है उन्हें दक्षिण मुखी या दक्षि-नाभिमुखी मूर्ति कहा जाता है। दक्षिण मुखी का अर्थ है दक्षिण दिशा या दांयी ओर। दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यमराज का क्षेत्र माना जाता है जिसे यमलोक भी कहते हैं। इसके अलावा दांयी दिशा सूर्य नाड़ी का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए यह माना जा सकता है कि जो यमलोक का सामना करने में सक्षम है वो शक्तिशाली है। साथ ही जिसकी सूर्य नाड़ी सक्रिय है वह भी दिव्य शक्ति रखता है। इसलिए दोनों ही मान्यताओं में यह सिद्ध होता है कि बांयी ओर सूंड वाली गणेश प्रतिमा जागृत अवस्था में है यानि हमें शुभ फल देती है।

कई लोग सोचते हैं कि दक्षिण दिशा ठीक नहीं होती क्योंकि मृत्यु के बाद उसी दिशा में व्यक्ति के पापों और गुणों का आंकलन होता है जिसे हम मृत्यु के बाद का लेखा-जोखा भी कहते हैं। लेकिन दक्षिण दिशा को बुरा तब माना गया है जब जीवित व्यक्ति उस ओर पैर करके सोता है। दक्षिणामुखी प्रतिमा की पूजा सामान्य तौर से नहीं की जाती क्योंकि त्रियक (राज) आवृत्तियां दक्षिण से ही उत्सर्जित होती हैं। बल्कि पूजा के पूरे विधि-विधान के साथ यह पूजा की जाती है इसलिए दक्षिण दिशा से जुड़ी बुराइयों का इस पर कोई असर नहीं पड़ता।

बांयी ओर मुड़ी सूंड

बांयी ओर मुड़ी सूंड की गणपति प्रतिमा को वाममुखी कहते हैं। वाम का अर्थ होता है उत्तर दिशा या बांयी ओर। बांयी ओर ही चंद्र नाड़ी होती है। यह शांति प्रदान करती है। इसके अलावा उत्तर दिशा को अध्यात्मिक रूप से अच्छा माना जाता है और यह आनंद का अहसास कराती है, इसलिए वाममुखी गणपति की पूजा की जाती है। यह पूजा परंपरागत तरीके से की जाती है।

गणपति के 32 रूप

बांयी ओर रूप में-

तरुण गणपति, वीर गणपति, द्विज गणपति, सिद्धि गणपति, उच्चिष्ठ गणपति, विघ्न गणपति, लक्ष्मी गणपति, महा गणपति, विजय गणपति, नृत्य गणपति, उर्ध्व गणपति, वर्धा गणपति, क्षिप प्रसाद गणपति, उद्दण्ड गणपति, त्रिमुख गणपति, सिंह गणपति, दुर्गा गणपति

दांयी ओर रूप में-

बाला गणपति, भक्ति, गणपति, शक्ति गणपति, क्षिप्रा गणपति, हेरम्ब गणपति, एकाक्षरा गणपति, त्रेयक्षर गणपति, हरिद्रा गणपति, एकदन्त गणपति, सृष्टि गणपति, ऋणमोचन गणपति, ढुण्डि गणपति, योग गणपति, संकष्ट हरण गणपतिदांयी ओर रूप में-

दोनों ओर सूंड के रूप में

दोनों ओर सूंड के रूप में