मुनि प्रमाण सागर जी महाराज के अनुसार अन्याय हो या न्याय, पैसा कमाने के लिए व्यक्ति के अन्दर कुशलता होनी चाहिए। एक योग्य व्यक्ति ही धन कमा सकता है। रुपये कमाने के लिए व्यक्ति के अंदर ट्रैक्ट होना चाहिए, गुडविल होना चाहिए, लिंक होना चाहिए। जब यह सारी चीजें जुड़ेगी तब व्यक्ति पैसा कमा सकता है, ऐसे बैठे-बैठे कोई पैसा नहीं कमा सकता। यह भी कह सकते हैं कि शुभ संयोग, यह पुण्य के उदय होने पर ही व्यक्ति रुपये कमाता है। पुण्य के उदय में प्राप्त शुभ संयोगों का प्रयोग लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। जिनकी बुद्धि निर्मल होती है वह सब संयोगों का सदुपयोग करते हैं, जिनकी बुद्धि विकृत होती है वह सब संयोगों का दुरुपयोग करते हैं। जो भव्य सम्यक् दृष्टि जीव होता है वह अपने जीवन में उपलब्ध शुभ संयोगो का सात्विकता के क्षेत्र में प्रयोग करता है, गलत दिशा में नहीं लगाता, वह न्याय नीति का आश्रय लेता है, लेकिन उसकी भवितव्यता खराब होती है। वे अन्याय-अनीति पर उतारू होते हैं, अनाचार करते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं, आतंक फैलाते हैं और जब तक उनका पुण्य प्रबल होता है वो कुछ हद तक उसमें सक्सेस भी होते हैं, लेकिन वे पुण्य के उदय में पाप करके ही पैसा कमाते हैं। अन्याय अपने आप में महापाप हैं। इसलिए उसके द्वारा किया जाने वाला गलत कार्य सर्वथा पाप है। अब अन्याय करके वह यदि दान दे रहा है, तो उसे स्वीकारने के साथ ही उसे सुधारने की भी कोशिश करनी चाहिए।
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