ठाकुर बांके बिहारी मंदिर

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर

श्रेणी: कृष्णा | लेखक : Admin | दिनांक : 19 July 2022 04:39

मथुरा के वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी जी का विश्व प्रसिद्ध विशाल व भव्य मंदिर है। ठाकुर बांके बिहारी भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी का एक स्वरूप हैं। यह भी कह सकते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का एक विग्रह रूप ही ठाकुर बांके बिहारी हैं। ठाकुर बांके बिहारी के प्रकृट होने के पीछे भी एक भक्तिरस की चासनी में डूबी हुई  कहानी है। दरअसल, वृंदावन के पास राजपुर नामक एक गांव है। जहां स्वामी हरिदास सन्यासी होने से पहले अपने परिवार के साथ रहा करते थे। उनका जन्म एक सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता गंगाधर और माता चित्रादेवी थी। युवा होने पर हरिदास का विवाह हरिमति नामक सौंदर्यमयी एवं सद्गुणी कन्या से किया। लेकिन हरिदास का मन गृहस्थ जीवन में नहीं लगा। पति को गृहस्थ जीवन से विमुख देखकर उनकी पतिव्रता पत्नी ने उनकी साधना में विध्न उपस्थित न करने के उद्देश्य से योगाग्नि के माध्यम से अपना शरीर त्याग दिया और उनका तेज हरिसाद के चरणों में लीन हो गया।

पत्नी के निधन के बाद हरिसाद घर-परिवार से विरक्त होकर  वृंदावन चले आए। वह वृंदावन के निधिवन में रहते और भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी का भजन करते। वह कृष्ण और राधा रानी को अपने भजनों से रिझाते। भजन गाते-गाते इतना भगवान की भक्ति में इस तरह से डूब जाते थे कि उन्हें दुनिया की कोई सुध तक नहीं रहती थी। स्वामी हरिदास की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी उनको दर्शन देने लगे। जब स्वामी हरिसार के शिष्यों को जानकारी हुई कि उन्हें भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के दर्शन होते हैं तो उन्होंने हरिदास से कहा कि अाप अकेले ही दर्शन का लाभ लेते हैं। हमको भी तो प्रभु के दर्शन कराइए। इसके बाद स्वामी हरिदास भगवान की भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगे। देखते ही देखते स्वामी हरिदास की आवाज बदल गई। एक दिव्य प्रकाश दिखाई देने लगा। हरिदास के शिष्यों की आंखे चौधियाने लगी। तभी राधारानी और श्रीकृष्ण दोनों प्रकट हुए। तब स्वामी हरिदास ने भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा कि आप मुझे तो दर्शन लाभ दे रहे हैं। लेकिन अन्य लोगों को भी आप अपने दर्शनों का लाभ दीजिए। स्वामी हरिदास की अपील पर भगवान मान गए। जिस पर स्वामी हरिदास ने कहा कि प्रभु मैं ठहरा फकीर। आपको तो लगोट पहना दूंगा, लेकिन राधा रानी के लिए रोज नए- नए आभूषण कहां से लेकर आऊंगा। जिस पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक विग्रह प्रकट किया। जिसमें राधारानी और स्वयं श्रीकृष्ण एक ही प्रतिमा में समाहित हो गए। वहीं ठाकुर बांके बिहारी हैं, जो आज मंदिर में विराजमान हैं। 

--- आंखे मिलने पर भक्त के साथ चल देते हैं ठाकुर बांके बिहारी : 

ठाकुर बांके बिहारी के विग्रह रूप को देखकर भक्त मोहित हो जाते हैं। बांके बिहारी के दर्शन मात्र से भक्तों का मन नहीं भरता है। इच्छा करती है कि बस प्रभु को निहारते ही रहो। कई बार तो प्रभु भक्तों के साथ चल भी देते है। इस तरह की घटना कई बार घटित हो चुकी हैं। मंदिर से कई बार ठाकुर बांके बिहारी की प्रतिमा गायब हुई है। 

एक बार का प्रसंग है कि एक बुजुर्ग दंपति भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए वृंदावन पहुंचे। वह एक सप्ताह तक रोज सुबह-शाम बांके बिहारी मंदिर में प्रभु के दर्शन करने पहुंचते। घंटो-घंटो तक मंदिर में बैठकर प्रभु का भजन करते। एक सप्ताह के बाद जब बुजुर्ग दंपति के चलने का समय हुआ तो अंतिम दर्शन के लिए दोनों मंदिर पहुंचे। उस दौरान बुजुर्ग महिला ने रोते हुए प्रभु से विनती करते हुए कहा कि प्रभु हम तो यहां नहीं रह सकते, लेकिन आप तो हमारे साथ चल सकते हैं। बस फिर क्या था, जैसे ही बुजुर्ग दंपति अपना सामान लेकर चले। उन्हें एक गोप बालक मिला, जो उनके साथ चलने के लिए बैलगाड़ी में बैठ गया। उसी दौरान मंदिर में पंडित ने देखा कि प्रभु मंदिर में नहीं है। पंडित जी समझ गए कि प्रभु किसी भक्त के साथ चले गए। वह दौड़ते हुए वृंदावन से बाहर जाने वाले रास्ते पर पहुंचे। जहां उन्होंने एक बैलगाड़ी में गोप बालक को देखा। पंडित जी समझ गए कि यहीं प्रभु है। उन्होंने बुजुर्ग दंपति को प्रभु के मंदिर से गायब होने के बारे में बताया। साथ ही प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहा कि आप अगर वृंदावन से चले जाओगे तो यहां आनेे वाले भक्तों को आपके दर्शन कैसे होंगे। बुजुर्ग महिला के प्रार्थना करने पर प्रभु मान गए और बैलगाड़ी से अचानक गायब हो गए। जब पंडित जी ने मंदिर आकर देखा तो प्रभु मंदिर में विराजमान थे। पंडितों के अनुसार इस तरह की घटना कई बार घटित हुई हैं। 

- बार-बार लगाया जाता है पर्दा : 

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में बार-बार पर्दा लगाया जाता है। कहा जाता है कि किसी भक्त के साथ प्रभु मंदिर से चले न जाए। इसके लिए बार बार पर्दा लगाया जाता है। कहा जाता है कि प्रभु की नजर इतनी मनमोहक हैं कि भक्तों का मन भरता ही नहीं है। वह लगातार निहारने का मन करता है। जब भक्त की नजर भगवान की नजरों से मिल जाएंगी तो तब भी प्रभु भक्त के साथ चल देंगे। प्रभु मंदिर को छोड़कर न जाए। इसके लिए बार बार मंदिर का पर्दा लगाया जाता है। 

- घंटा-घड़ियाल बजाकर नहीं जगाए जाते बांके बिहारी : 

ठाकुर बांके बिहारी को आज भी बाल रूप में देखा जाता है। इसलिए सुबह मंगला आरती के समय मंदिर में घंटा - घड़ियाल नहीं बजाया जाता है। इसके पीछे की वजह लल्ला की नींद में किसी भी तरह का कोई विध्न पैदा न हो माना जाता है। कहीं व घंटा घडियाल की आवाज से डर न जाए। इसलिए प्रभु को मनोहर भजन सुनकार जगाया जाता है। 

- देर से जगाया जाते हैं ठाकुर बांके बिहारी : 

माना यह जाता है कि आज भी प्रभु निधिवन में रासलीला के लिए जाते हैं। वहां से लौटने में कई बार देर भी हो जाती होगी। इसलिए प्रभु की नींद पूरी हो सके। इसलिए उन्हें देर से जगाया जाता है।

-इस तरह पहुंचे ठाकुर बांके बिहारी के दर: 

अगर आप एनसीआर से ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए जा रहे हैं तो आपके लिए दो मार्ग है, पहला यमुना एक्सप्रेस वे होकर राया कट से वृंदावन पहुंचने का, दूसरा राष्ट्रीय राजमार्ग 19 से छटीकरा होते हुए वृंदावन पहुंचने का। छटीकरा से करीब दस किलोमीटर तथा मथुरा से करीब 13 किलोमीटर तथा यमुना एक्सप्रेस वे से करीब 25 किलोमीटर की वृंदावन की दूरी है।  मथुरा से वृंदावन के लिए थ्री व्हीलर तथा उत्तर प्रदेश परिवहन निगम तथा नगर निगम की ओर से संचालित बसों की सीधी सर्विस है। बाकी दोनों मार्गों से आप अपने ही वाहन से पहुंच सकते हैं। निजी वाहन जरूर चलते हुए मिल जाएंगे। 

-- इस बार का रखें ध्यान : 

वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए जाने वाले भक्तों को दो बातों का विशेष ध्यान रखना है। पहला मंदिर में ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन सुबह-शाम को ही  कर सकते हैं। दोपहर 12 बजे के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। दूसरा वृंदावन में बंदरों की संख्या अधिक है। इसलिए अपना चश्मा उतारकर जेब में रख ले। क्योंकि मौका लगते ही बंदर आंखों से चश्मा उतार ले जाते हैं। फिर आपको फ्रुटी आदि बंदर को पिलाने पर ही चश्मा मिलने की संभावना रहती है।